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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

जिस को हम ने चाहा था वो कहीं नहीं इस मंज़र में
जिस ने हम को प्यार किया वो सामने वाली मूरत है

ऐतबार साजिद




जो मिरी शबों के चराग़ थे जो मिरी उमीद के बाग़ थे
वही लोग हैं मिरी आरज़ू वही सूरतें मुझे चाहिएँ

ऐतबार साजिद




जुदाइयों की ख़लिश उस ने भी न ज़ाहिर की
छुपाए अपने ग़म ओ इज़्तिराब मैं ने भी

ऐतबार साजिद




किसे पाने की ख़्वाहिश है कि 'साजिद'
मैं रफ़्ता रफ़्ता ख़ुद को खो रहा हूँ

ऐतबार साजिद




किसी को साल-ए-नौ की क्या मुबारकबाद दी जाए
कैलन्डर के बदलने से मुक़द्दर कब बदलता है

ऐतबार साजिद




मैं तकिए पर सितारे बो रहा हूँ
जनम-दिन है अकेला रो रहा हूँ

ऐतबार साजिद




मकीनों के तअल्लुक़ ही से याद आती है हर बस्ती
वगरना सिर्फ़ बाम-ओ-दर से उल्फ़त कौन रखता है

ऐतबार साजिद