जल उठें यादों की क़ंदीलें, सदाएँ डूब जाएँ
दर-हक़ीक़त ख़ामुशी सहरा भी है दरिया भी है
अहमद शहरयार
ख़्वाब-ए-ज़ियाँ हैं उम्र का ख़्वाब हैं हासिल-ए-हयात
इस का भी था यक़ीं मुझे वो भी मिरे गुमाँ में था
अहमद शहरयार
लम्स-ए-सदा-ए-साज़ ने ज़ख़्म निहाल कर दिए
ये तो वही हुनर है जो दस्त-ए-तबीब-ए-जाँ में था
अहमद शहरयार
न दस्तकें न सदा कौन दर पे आया है
फ़क़ीर-ए-शहर है या शहरयार देखिएगा
अहमद शहरयार
क़तरा ठीक है दरिया होने में नुक़सान बहुत है
देख तो कैसे डूब रहा है मेरा लश्कर मुझ में
अहमद शहरयार
रातों को जागते हैं इसी वास्ते कि ख़्वाब
देखेगा बंद आँखें तो फिर लौट जाएगा
अहमद शहरयार
समाई किस तरह मेरी आँखों की पुतलियों में
वो एक हैरत जो आईने से बहुत बड़ी थी
अहमद शहरयार