बाग़-ए-हवस में कुछ नहीं दिल है तो ख़ुशनुमा है दिल
आग लगाएगी तलब होगा ये ख़स तबाह-कुन
अहमद अता
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हँसते हँसते हो गया बर्बाद मैं
ख़ुश-दिली ऐसी भी होती है भला
अहमद अता
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हम आज हँसते हुए कुछ अलग दिखाई दिए
ब-वक़्त-ए-गिर्या हम ऐसे थे, सारे जैसे हैं
अहमद अता
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हम आस्तान-ए-ख़ुदा-ए-सुख़न पे बैठे थे
सो कुछ सलीक़े से अब ज़िंदगी तबाह करें
अहमद अता
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हम बहकते हुए आते हैं तिरे दरवाज़े
तेरे दरवाज़े बहकते हुए आते हैं हम
अहमद अता
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हम ने अव्वल तो कभी उस को पुकारा ही नहीं
और पुकारा तो पुकारा भी सदाओं के बग़ैर
अहमद अता
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हमारी उम्र से बढ़ कर ये बोझ डाला गया
सो हम बड़ों से बुज़ुर्गों की तरह मिलते हैं
अहमद अता
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