मैं तो मिट्टी हो रहा था इश्क़ में लेकिन 'अता'
आ गई मुझ में कहीं से बे-दिमाग़ी 'मीर' की
अहमद अता
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मैं उस की आँखों के बारे में कुछ नहीं कहता
उफ़ुक़ से ता-बा-उफ़ुक़ इक जहाँ समझ लीजे
अहमद अता
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ना-रसाई ने अजब तौर सिखाए हैं 'अता'
यानी भूले भी नहीं तुम को पुकारा भी नहीं
अहमद अता
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फिर कोई दूर हुआ जाता है
फिर कोई दिल के क़रीब आएगा
अहमद अता
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सड़क पे बैठ गए देखते हुए दुनिया
और ऐसे तर्क हुई एक ख़ुद-कुशी हम से
अहमद अता
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ताबीर बताई जा चुकी है
अब आँख को ख़्वाब देखना है
अहमद अता
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उस का बदन है राग सा राग भी एक आग सा
आग का मस तबाह-कुन राग का रस तबाह-कुन
अहमद अता
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