वैसा ही ख़राब शख़्स हूँ मैं
जैसा कोई छोड़ कर गया था
अहमद अता
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ये चादर एक अलामत बनी हुई थी यहाँ
दर-अस्ल ग़म का लिबादा बहुत ज़रूरी था
अहमद अता
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ये जो रातों को मुझे ख़्वाब नहीं आते 'अता'
इस का मतलब है मिरा यार ख़फ़ा है मुझ से
अहमद अता
ये तिरा हिज्र अता दर्द अता कर्ब अता
अब 'अता' कैसे जिए तेरी अताओं के बग़ैर
अहमद अता
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ज़िंदगी ख़्वाब है और ख़्वाब भी ऐसा कि मियाँ
सोचते रहिए कि इस ख़्वाब की ताबीर है क्या
अहमद अता
आहन ओ संग को ज़हराब-ए-फ़ना चाट गया
पहले दीवार शिकस्ता हुई फिर बाब गिरा
अहमद अज़ीम
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ऐ शाम-ए-हिज्र-ए-यार मिरी तू गवाही दे
मैं तेरे साथ साथ रहा घर नहीं गया
अहमद अज़ीम
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