वो जो प्यासा लगता था सैलाब-ज़दा था
पानी पानी कहते कहते डूब गया है
आनिस मुईन
याद है 'आनिस' पहले तुम ख़ुद बिखरे थे
आईने ने तुम से बिखरना सीखा था
आनिस मुईन
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ये और बात कि रंग-ए-बहार कम होगा
नई रुतों में दरख़्तों का बार कम होगा
आनिस मुईन
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ये इंतिज़ार सहर का था या तुम्हारा था
दिया जलाया भी मैं ने दिया बुझाया भी
आनिस मुईन
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देख दामन-गीर महशर में तिरे होवेंगे हम
ख़ूँ हमारा अपने दामन से न ऐ क़ातिल छुड़ा
आरिफ़ुद्दीन आजिज़
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आँख खुलते ही बस्तियाँ ताराज
कोई लज़्ज़त नहीं है ख़्वाबों में
आशुफ़्ता चंगेज़ी
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'आशुफ़्ता' अब उस शख़्स से क्या ख़ाक निबाहें
जो बात समझता ही नहीं दिल की ज़बाँ की
आशुफ़्ता चंगेज़ी
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