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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

बदन की अंधी गली तो जा-ए-अमान ठहरी
मैं अपने अंदर की रौशनी से डरा हुआ हूँ

आनिस मुईन




बिखर के फूल फ़ज़ाओं में बास छोड़ गया
तमाम रंग यहीं आस-पास छोड़ गया

आनिस मुईन




दरकार तहफ़्फ़ुज़ है प साँस भी लेना है
दीवार बनाओ तो दीवार में दर रखना

आनिस मुईन




गए ज़माने की चाप जिन को समझ रहे हो
वो आने वाले उदास लम्हों की सिसकियाँ हैं

आनिस मुईन




गहरी सोचें लम्बे दिन और छोटी रातें
वक़्त से पहले धूप सरों पे आ पहुँची

आनिस मुईन




गया था माँगने ख़ुशबू मैं फूल से लेकिन
फटे लिबास में वो भी गदा लगा मुझ को

आनिस मुईन




गूँजता है बदन में सन्नाटा
कोई ख़ाली मकान हो जैसे

आनिस मुईन