हैरत से जो यूँ मेरी तरफ़ देख रहे हो
लगता है कभी तुम ने समुंदर नहीं देखा
आनिस मुईन
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हमारी मुस्कुराहट पर न जाना
दिया तो क़ब्र पर भी जल रहा है
आनिस मुईन
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हज़ारों क़ुमक़ुमों से जगमगाता है ये घर लेकिन
जो मन में झाँक के देखूँ तो अब भी रौशनी कम है
आनिस मुईन
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इक डूबती धड़कन की सदा लोग न सुन लें
कुछ देर को बजने दो ये शहनाई ज़रा और
आनिस मुईन
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कब बार-ए-तबस्सुम मिरे होंटों से उठेगा
ये बोझ भी लगता है उठाएगा कोई और
आनिस मुईन
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क्यूँ खुल गए लोगों पे मिरी ज़ात के असरार
ऐ काश कि होती मिरी गहराई ज़रा और
आनिस मुईन
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मैं अपनी ज़ात की तन्हाई में मुक़य्यद था
फिर इस चटान में इक फूल ने शिगाफ़ किया
आनिस मुईन
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