ये और बात कि रंग-ए-बहार कम होगा 
नई रुतों में दरख़्तों का बार कम होगा 
तअ'ल्लुक़ात में आई है बस ये तब्दीली 
मिलेंगे अब भी मगर इंतिज़ार कम होगा 
मैं सोचता रहा कल रात बैठ कर तन्हा 
कि इस हुजूम में मेरा शुमार कम होगा 
पलट तो आएगा शायद कभी यही मौसम 
तिरे बग़ैर मगर ख़ुश-गवार कम होगा 
बहुत तवील है 'आनस' ये ज़िंदगी का सफ़र 
बस एक शख़्स पे दार-ओ-मदार कम होगा
        ग़ज़ल
ये और बात कि रंग-ए-बहार कम होगा
आनिस मुईन

