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भीनी ख़ुशबू सुलगती साँसों में | शाही शायरी
bhini KHushbu sulagti sanson mein

ग़ज़ल

भीनी ख़ुशबू सुलगती साँसों में

आशुफ़्ता चंगेज़ी

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भीनी ख़ुशबू सुलगती साँसों में
बिजलियाँ भर गई हैं हाथों में

सिर्फ़ तेरा बदन चमकता है
काली लम्बी उदास रातों में

क्या क्या छीनेगा ऐ अमीर-ए-शहर
इतने मंज़र हैं मेरी आँखों में

आँख खुलते ही बस्तियाँ ताराज
कोई लज़्ज़त नहीं है ख़्वाबों में

बंद हैं आज सारे दरवाज़े
आग रौशन है साएबानों में

वो सज़ा दो कि सब को इबरत हो
बच गया है ये ख़ोशा-चीनों में