मेरे अपने अंदर एक भँवर था जिस में
मेरा सब कुछ साथ ही मेरे डूब गया है
आनिस मुईन
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मुमकिन है कि सदियों भी नज़र आए न सूरज
इस बार अंधेरा मिरे अंदर से उठा है
आनिस मुईन
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न जाने बाहर भी कितने आसेब मुंतज़िर हों
अभी मैं अंदर के आदमी से डरा हुआ हूँ
आनिस मुईन
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न थी ज़मीन में वुसअत मिरी नज़र जैसी
बदन थका भी नहीं और सफ़र तमाम हुआ
आनिस मुईन
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था इंतिज़ार मनाएँगे मिल के दीवाली
न तुम ही लौट के आए न वक़्त-ए-शाम हुआ
आनिस मुईन
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तुम्हारे नाम के नीचे खिंची हुई है लकीर
किताब-ए-ज़ीस्त है सादा इस इंदिराज के ब'अद
आनिस मुईन
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उतारा दिल के वरक़ पर तो कितना पछताया
वो इंतिसाब जो पहले बस इक किताब पे था
आनिस मुईन
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