जो दिल में थी निगाह सी निगाह में किरन सी थी
वो दास्ताँ उलझ गई वज़ाहतों के दरमियाँ
अदा जाफ़री
काँटा सा जो चुभा था वो लौ दे गया है क्या
घुलता हुआ लहू में ये ख़ुर्शीद सा है क्या
अदा जाफ़री
कटता कहाँ तवील था रातों का सिलसिला
सूरज मिरी निगाह की सच्चाइयों में था
अदा जाफ़री
ख़ामुशी से हुई फ़ुग़ाँ से हुई
इब्तिदा रंज की कहाँ से हुई
अदा जाफ़री
ख़लिश-ए-तीर-ए-बे-पनाह गई
लीजिए उन से रस्म-ओ-राह गई
अदा जाफ़री
ख़ज़ीने जाँ के लुटाने वाले दिलों में बसने की आस ले कर
सुना है कुछ लोग ऐसे गुज़रे जो घर से आए न घर गए हैं
अदा जाफ़री
किन मंज़िलों लुटे हैं मोहब्बत के क़ाफ़िले
इंसाँ ज़मीं पे आज ग़रीब-उल-वतन सा है
अदा जाफ़री