ये नहीं कि तू ने भेजा ही नहीं पयाम कोई
मगर इक वही न आया जो पयाम चाहते हैं
अबुल मुजाहिद ज़ाहिद
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आ देख कि मेरे आँसुओं में
ये किस का जमाल आ गया है
अदा जाफ़री
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अभी सहीफ़ा-ए-जाँ पर रक़म भी क्या होगा
अभी तो याद भी बे-साख़्ता नहीं आई
अदा जाफ़री
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अगर सच इतना ज़ालिम है तो हम से झूट ही बोलो
हमें आता है पतझड़ के दिनों गुल-बार हो जाना
अदा जाफ़री
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बड़े ताबाँ बड़े रौशन सितारे टूट जाते हैं
सहर की राह तकना ता सहर आसाँ नहीं होता
अदा जाफ़री
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बड़े ताबाँ बड़े रौशन सितारे टूट जाते हैं
सहर की राह तकना ता-सहर आसाँ नहीं होता
अदा जाफ़री
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बस एक बार मनाया था जश्न-ए-महरूमी
फिर उस के बाद कोई इब्तिला नहीं आई
अदा जाफ़री
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