अपने अपने हौसलों अपनी तलब की बात है
चुन लिया हम ने उन्हें सारा जहाँ रहने दिया
अदीब सहारनपुरी
बाँध कर अहद-ए-वफ़ा कोई गया है मुझ से
ऐ मिरी उम्र-ए-रवाँ और ज़रा आहिस्ता
अदीब सहारनपुरी
हज़ार बार इरादा किए बग़ैर भी हम
चले हैं उठ के तो अक्सर गए उसी की तरफ़
अदीब सहारनपुरी
मंज़िलें न भूलेंगे राह-रौ भटकने से
शौक़ को तअल्लुक़ ही कब है पाँव थकने से
अदीब सहारनपुरी
राहत की जुस्तुजू में ख़ुशी की तलाश में
ग़म पालती है उम्र-ए-गुरेज़ाँ नए नए
अदीब सहारनपुरी
यही महर ओ माह ओ अंजुम को गिला है मुझ से या-रब
कि उन्हें भी चैन मिलता जो मुझे क़रार होता
अदीब सहारनपुरी
बिछड़ के तुझ से न देखा गया किसी का मिलाप
उड़ा दिए हैं परिंदे शजर पे बैठे हुए
अदीम हाशमी