बे-नवा हैं कि तुझे सौ-ओ-नवा भी दी है
जिस ने दिल तोड़ दिए उस की दुआ भी दी है
अदा जाफ़री
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बोलते हैं दिलों के सन्नाटे
शोर सा ये जो चार-सू है अभी
अदा जाफ़री
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बुझी हुई हैं निगाहें ग़ुबार है कि धुआँ
वो रास्ता है कि अपना भी नक़्श-ए-पा न मिले
अदा जाफ़री
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दिल के वीराने में घूमे तो भटक जाओगे
रौनक़-ए-कूचा-ओ-बाज़ार से आगे न बढ़ो
अदा जाफ़री
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एक आईना रू-ब-रू है अभी
उस की ख़ुश्बू से गुफ़्तुगू है अभी
अदा जाफ़री
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गुल पर क्या कुछ बीत गई है
अलबेला झोंका क्या जाने
अदा जाफ़री
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हाथ काँटों से कर लिए ज़ख़्मी
फूल बालों में इक सजाने को
अदा जाफ़री
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