लब-ए-निगार को ज़हमत न दो ख़ुदा के लिए
हम अहल-ए-शौक़ ज़बान-ए-नज़र समझते हैं
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
आँसुओं से कोई आवाज़ को निस्बत न सही
भीगती जाए तो कुछ और निखरती जाए
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
जुनूँ में और ख़िरद में दर-हक़ीक़त फ़र्क़ इतना है
वो ज़ेर-ए-दर है साक़ी और ये ज़ेर-ए-दाम है साक़ी
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
जनाब-ए-शैख़ समझते हैं ख़ूब रिंदों को
जनाब-ए-शैख़ को हम भी मगर समझते हैं
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
हमारी तरह ख़राब-ए-सफ़र न हो कोई
इलाही यूँ तो किसी का न राहबर गुम हो
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ुबार-ए-राह चला साथ ये भी क्या कम है
सफ़र में और कोई हम-सफ़र मिले न मिले
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़म-ए-ज़िंदगी इक मुसलसल अज़ाब
ग़म-ए-ज़िंदगी से मफ़र भी नहीं
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
छटे ग़ुबार-ए-नज़र बाम-ए-तूर आ जाए
पियो शराब कि चेहरे पे नूर आ जाए
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
बस्तियों में होने को हादसे भी होते हैं
पत्थरों की ज़द पर कुछ आईने भी होते हैं
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ