ग़म-ए-ज़िंदगी इक मुसलसल अज़ाब
ग़म-ए-ज़िंदगी से मफ़र भी नहीं
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
टैग:
| 2 लाइन शायरी |
छटे ग़ुबार-ए-नज़र बाम-ए-तूर आ जाए
पियो शराब कि चेहरे पे नूर आ जाए
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
बस्तियों में होने को हादसे भी होते हैं
पत्थरों की ज़द पर कुछ आईने भी होते हैं
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
टैग:
| Hadsa |
| 2 लाइन शायरी |
बड़े बड़ों के क़दम डगमगा गए 'ताबाँ'
रह-ए-हयात में ऐसे मक़ाम भी आए
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
टैग:
| 2 लाइन शायरी |
| 2 लाइन शायरी |