इस तरफ़ बज़्म में हम थे वो थे
उस तरफ़ शम्अ थी परवाना था
सख़ी लख़नवी
जाएगी गुलशन तलक उस गुल की आमद की ख़बर
आएगी बुलबुल मिरे घर में मुबारकबाद को
सख़ी लख़नवी
जीतेंगे न हम से बाज़ी-ए-इश्क़
अग़्यार के पिट पड़ेंगे पाँसे
सख़ी लख़नवी
जिस के घर जाते न थे हज़रत-ए-दिल
वाँ लगे फाँद ने दीवार ये क्या
सख़ी लख़नवी
कअ'बे में सख़्त-कलामी सुन ली
बुत-कदे में न कभी आइएगा
सख़ी लख़नवी
कभी पहुँचेगा दिल उन उँगलियों तक
नगीने की तरह ख़ातिम में जड़ के
सख़ी लख़नवी
कहना मजनूँ से कि कल तेरी तरफ़ आऊँगा
ढूँडने जाता हूँ फ़रहाद को कोहसार में आज
सख़ी लख़नवी
ख़ाल और रुख़ से किस को दूँ निस्बत
ऐसे तारे न ऐसा प्यारा चाँद
सख़ी लख़नवी
ख़ुदा के पास क्या जाएँगे ज़ाहिद
गुनाह-गारों से जब ये बार पाएँ
सख़ी लख़नवी