बाम पर आता है हमारा चाँद
आसमाँ से करे किनारा चाँद
आप ही की तलाश में साहब
गर्दिशें करता है गवारा चाँद
ख़ाल और रुख़ से किस को दूँ निस्बत
ऐसे तारे न ऐसा प्यारा चाँद
आग भड़की जो आतिशीं रुख़ की
अभी उड़ जाए हो के पारा चाँद
होने तो दो मुक़ाबला उन से
ग़ुल करेंगे मलक कि हारा चाँद
चर्ख़ से उन को ताकता है 'सख़ी'
जाएगा एक रोज़ मारा चाँद
ग़ज़ल
बाम पर आता है हमारा चाँद
सख़ी लख़नवी