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सख़ी लख़नवी शायरी | शाही शायरी

सख़ी लख़नवी शेर

54 शेर

दर्द को गुर्दा तड़पने को जिगर
हिज्र में सब हैं मगर दिल तो नहीं

सख़ी लख़नवी




देखें कहता है ख़ुदा हश्र के दिन
तुम को क्या ग़ैर को क्या हम को क्या

सख़ी लख़नवी




देखो क़लई खुलेगी साफ़ उस की
आईना उन के मुँह चढ़ा है आज

सख़ी लख़नवी




दिल कलेजे दिमाग़ सीना ओ चश्म
इन के रहने के हैं मकान बहुत

सख़ी लख़नवी




एक दो तीन चार पाँच छे सात
यूँही गिन लेंगे कम के क्या मअनी

सख़ी लख़नवी




आँखों से पा-ए-यार लगाने की है हवस
हल्क़ा हमारे चश्म का उस की रिकाब हो

सख़ी लख़नवी




हम उन से आज का शिकवा करेंगे
उखाड़ेंगे वो बरसों की गड़ी बात

सख़ी लख़नवी




हमा-तन हो गए हैं आईना
ख़ुद-नुमाई सी ख़ुद-नुमाई है

सख़ी लख़नवी




हिचकियाँ आती हैं पर लेते नहीं वो मेरा नाम
देखना उन की फ़रामोशी को मेरी याद को

सख़ी लख़नवी