ज़ुल्फ़-ए-शब-रंग जो बनाई है
उन दिनों शाने की बन आई है
हैफ़ साबित है जेब ने दामन
और जुनून में बहार आई है
कहे परवाना शम्अ-रू तुझ को
उस की आँखों में चर्बी छाई है
मेरी उन की बिगाड़ होने से
ख़ूब अग़्यार की बन आई है
पानी माँगेगा क्या दहान-ए-ज़ख़्म
तेग़ इक आब-दार कहानी है
कलिमा उन बुतों ने पढ़वाया
ख़ूब-रूई है या ख़ुदाई है
हमा-तन हो गए हैं आईना
ख़ुद-नुमाई सी ख़ुद-नुमाई है
यार से हो भला रक़ीबों का
ऐ 'सख़ी' बस यही बुराई है
ग़ज़ल
ज़ुल्फ़-ए-शब-रंग जो बनाई है
सख़ी लख़नवी