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ज़ुल्फ़-ए-शब-रंग जो बनाई है | शाही शायरी
zulf-e-shab-rang jo banai hai

ग़ज़ल

ज़ुल्फ़-ए-शब-रंग जो बनाई है

सख़ी लख़नवी

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ज़ुल्फ़-ए-शब-रंग जो बनाई है
उन दिनों शाने की बन आई है

हैफ़ साबित है जेब ने दामन
और जुनून में बहार आई है

कहे परवाना शम्अ-रू तुझ को
उस की आँखों में चर्बी छाई है

मेरी उन की बिगाड़ होने से
ख़ूब अग़्यार की बन आई है

पानी माँगेगा क्या दहान-ए-ज़ख़्म
तेग़ इक आब-दार कहानी है

कलिमा उन बुतों ने पढ़वाया
ख़ूब-रूई है या ख़ुदाई है

हमा-तन हो गए हैं आईना
ख़ुद-नुमाई सी ख़ुद-नुमाई है

यार से हो भला रक़ीबों का
ऐ 'सख़ी' बस यही बुराई है