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न बचपन में कहो हम को कड़ी बात | शाही शायरी
na bachpan mein kaho hum ko kaDi baat

ग़ज़ल

न बचपन में कहो हम को कड़ी बात

सख़ी लख़नवी

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न बचपन में कहो हम को कड़ी बात
न खुलवाओ कि छोटा मुँह बड़ी बात

सुनो तो गौहर-ए-दंदाँ की तारीफ़
अभी हो जाए मोती की लड़ी बात

बड़े अंधेर की तज़ईन है आज
न होने देगी मिस्सी की धड़ी बात

जहाँ अग़्यार उन के पास बैठे
वहीं बस हो गई कोई घड़ी बात

पयाम-ए-वस्ल पर वो हो गए तुर्श
ग़ज़ब आया खटाई में पड़ी बात

हम उन से आज का शिकवा करेंगे
उखाड़ेंगे वो बरसों की गड़ी बात

तबीअत उन की है कुछ उखड़ी उखड़ी
किसी ने फिर वहाँ मेरी जुड़ी बात

ये किस मिज़्गाँ की बर्छी का था मज़कूर
अनी हो कर कलेजे में अड़ी बात

'सख़ी' वो यूँ तो बोलेंगे न हम से
कभी हो जाएगी धोखे-धड़ी बात