पूछी तक़्सीर तो बोले कोई तक़्सीर नहीं
हाथ जोड़े तो कहा ये कोई ताज़ीर नहीं
हम भी दीवाने हैं वहशत में निकल जाएँगे
नज्द इक दश्त है कुछ क़ैस की जागीर नहीं
इक तिरी बात कि जिस बात की तरदीद मुहाल
इक मिरा ख़्वाब कि जिस ख़्वाब की ताबीर नहीं
कहीं ऐसा न हो कम-बख़्त में जान आ जाए
इस लिए हाथ में लेते मिरी तस्वीर नहीं
ग़ज़ल
पूछी तक़्सीर तो बोले कोई तक़्सीर नहीं
मुबारक अज़ीमाबादी