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ख़ुर्शीद तलब शायरी | शाही शायरी

ख़ुर्शीद तलब शेर

21 शेर

ख़ुदा ने बख़्शा है क्या ज़र्फ़ मोम-बत्ती को
पिघलते रहना मगर सारी रात चुप रहना

ख़ुर्शीद तलब




आइए बीच की दीवार गिरा देते हैं
कब से इक मसअला बे-कार में उलझा हुआ है

ख़ुर्शीद तलब




कभी दिमाग़ को ख़ातिर में हम ने लाया नहीं
हम अहल-ए-दिल थे हमेशा रहे ख़सारे में

ख़ुर्शीद तलब




हवा तो है ही मुख़ालिफ़ मुझे डराता है क्या
हवा से पूछ के कोई दिए जलाता है क्या

ख़ुर्शीद तलब




हवा से कह दो कि कुछ देर को ठहर जाए
ख़जिल हमारी इबारत हवा से होती है

ख़ुर्शीद तलब




हर एक अहद ने लिक्खा है अपना नामा-ए-शौक़
किसी ने ख़ूँ से लिखा है किसी ने आँसू से

ख़ुर्शीद तलब




हमें हर वक़्त ये एहसास दामन-गीर रहता है
पड़े हैं ढेर सारे काम और मोहलत ज़रा सी है

ख़ुर्शीद तलब




बहुत नुक़सान होता है
ज़ियादा होशियारी में

ख़ुर्शीद तलब




अज़ीज़ो आओ अब इक अल-विदाई जश्न कर लें
कि इस के ब'अद इक लम्बा सफ़र अफ़सोस का है

ख़ुर्शीद तलब