शदीद हब्स में राहत हवा से होती है
बहाल अपनी तबीअत हवा से होती है
कोई चराग़ जलाता नहीं सलीक़े से
मगर सभी को शिकायत हवा से होती है
लचक के टूट न जाए कहीं ये शाख़-ए-बदन
चले जो तेज़ तो वहशत हवा से होती है
कहीं धुवें के सिवा कुछ नज़र नहीं आता
कभी कभी वो शरारत हवा से होती है
हवा से कह दो कि कुछ देर को ठहर जाए
ख़जिल हमारी इबारत हवा से होती है
अज़ल से उस की तबीअत में सर-कशी है 'तलब'
कहाँ किसी की इताअत हवा से होती है
ग़ज़ल
शदीद हब्स में राहत हवा से होती है
ख़ुर्शीद तलब