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तमाशा रहगुज़र-दर-रहगुज़र अफ़सोस का है | शाही शायरी
tamasha rahguzar-dar-rahguzar afsos ka hai

ग़ज़ल

तमाशा रहगुज़र-दर-रहगुज़र अफ़सोस का है

ख़ुर्शीद तलब

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तमाशा रहगुज़र-दर-रहगुज़र अफ़सोस का है
भले ही ख़ुश हैं सब लेकिन सफ़र अफ़सोस का है

बहिश्ती बाग़ की सब तितलियाँ हैं पर-बुरीदा
शिकस्ता रंग ता-हद्द-ए-नज़र अफ़सोस का है

अभी इतरा रहे हैं साकिनान-ए-क़स्र-शाही
अभी आँखों से उन के महव घर अफ़सोस का है

हवेली अब कहाँ जो क़हक़हों से गूँजती थी
जहाँ तक देखता हूँ मैं खंडर अफ़सोस का है

कहाँ मुमकिन तिरे इशरत-कदे में शाम काटें
अभी तो सामना हर गाम पर अफ़सोस का है

अज़ीज़ो आओ अब इक अल-विदाई जश्न कर लें
कि इस के ब'अद इक लम्बा सफ़र अफ़सोस का है