बला से कोई कहे दिन को रात चुप रहना
तुम अपने होंटों पे रख लेना हात चुप रहना
कहीं पे कुछ भी नज़र आए पूछना मत कुछ
कभी निकलना अगर मेरे साथ चुप रहना
ख़ुदा ने बख़्शा है क्या ज़र्फ़ मोम-बत्ती को
पिघलते रहना मगर सारी रात चुप रहना
तुम्हारे सर पे बगूले भी आ के चीख़ेंगे
मगर भुलाना नहीं मेरी बात चुप रहना
तुम्हारी चीख़ तुम्हें बे-पनाह कर देगी
शिकारी कब से लगाए है घात चुप रहना
ज़बान तालू में पैवस्त कर के रखना 'तलब'
कोई मज़ाक़ है क्या ता-हयात चुप रहना
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ग़ज़ल
बला से कोई कहे दिन को रात चुप रहना
ख़ुर्शीद तलब