आबाद बस्तियाँ थीं फ़सीलों के साए में
आपस में बस्तियों को मिलाता हुआ हिसार
ख़ालिद इक़बाल यासिर
भूल जाना था जिसे सब्त है दिल पर मेरे
याद रखना था जिसे उस को भुला बैठा हूँ
ख़ालिद इक़बाल यासिर
बुरा भला वास्ता बहर-तौर उस से कुछ देर तो रहा है
कहीं सर-ए-राह सामना हो तो इतनी शिद्दत से मुँह न मोड़ूँ
ख़ालिद इक़बाल यासिर
हाँ ये मुमकिन है मगर इतना ज़रूरी भी नहीं
जो कोई प्यार में हारा वही फ़नकार हुआ
ख़ालिद इक़बाल यासिर
इन्हें दर-ए-ख़्वाब-गाह से किस लिए हटाया
मुहाफ़िज़ों की वफ़ा-शिआरी में क्या कमी थी
ख़ालिद इक़बाल यासिर
जैसी निगाह थी तिरी वैसा फ़ुसूँ हुआ
जो कुछ तिरे ख़याल में था जूँ-का-तूँ हुआ
ख़ालिद इक़बाल यासिर
ख़ुद अपनी शक्ल देखे एक मुद्दत हो गई मुझ को
उठा लेता है पत्थर टूटे आईने नहीं देता
ख़ालिद इक़बाल यासिर
लगता है ज़िंदा रहने की हसरत गई नहीं
मर के भी साँस लेने की आदत गई नहीं
ख़ालिद इक़बाल यासिर
पलट के आए न आए कोई सुने न सुने
सदा का काम फ़ज़ाओं में गूँजते तक है
ख़ालिद इक़बाल यासिर