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लगे जब प्यास तो रिसता लहू पीने नहीं देता | शाही शायरी
lage jab pyas to rista lahu pine nahin deta

ग़ज़ल

लगे जब प्यास तो रिसता लहू पीने नहीं देता

ख़ालिद इक़बाल यासिर

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लगे जब प्यास तो रिसता लहू पीने नहीं देता
उधड़ती खाल भी मेरी मुझे सीने नहीं देता

तमन्ना मौत की रद्द हो गई है वक़्त के डर से
अगर मैं ज़िंदगी माँगूँ मुझे जीने नहीं देता

ख़ुद अपनी शक्ल देखे एक मुद्दत हो गई मुझ को
उठा लेता है पत्थर टूटे आईने नहीं देता

दिलों को खींचने वाला तरन्नुम खो चुका उन का
मगर वो मेरे बे-आवाज़ साज़ीने नहीं देता

ज़माना उन पे 'यासिर' नाग की मानिंद बैठा है
मुझे मेरे जवाहिर मेरे गंजीने नहीं देता