रहती है साथ साथ कोई ख़ुश-गवार याद
तुझ से बिछड़ के तेरी रिफ़ाक़त गई नहीं
ख़ालिद इक़बाल यासिर
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यही बहुत है किसी तरह से भरम ही रह जाए पेश दुनिया
अगर मयस्सर नहीं है बादा ख़याल-ए-बादा भी कम नहीं है
ख़ालिद इक़बाल यासिर
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ज़माने के दरबार में दस्त-बस्ता हुआ है
ये दिल उस पे माइल मगर रफ़्ता रफ़्ता हुआ है
ख़ालिद इक़बाल यासिर
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