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कोई पहले तो कोई बाद में अय्यार हुआ | शाही शायरी
koi pahle to koi baad mein ayyar hua

ग़ज़ल

कोई पहले तो कोई बाद में अय्यार हुआ

ख़ालिद इक़बाल यासिर

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कोई पहले तो कोई बाद में अय्यार हुआ
अपनी ख़्वाहिश पे जो वाबस्ता-ए-दरबार हुआ

इक तही-जेब की ज़ारी कोई सुनता कैसे
राइज ऐसे ही नहीं सिक्का-ए-दीनार हुआ

बात सुल्तान से क्या तख़लिए में उस की हुई
मस्लहत-केश बताने पे न तय्यार हुआ

मुख़बिरी मेरी हुई चश्म-ए-ज़दन में कैसी
क़स्र-ए-दिल ही में सारा था कि मिस्मार हुआ

राह में आए हुए शाना-ए-कोहसार के साथ
अब्र टकरा के जो पल्टा तो गुहर-बार हवा

अपनी हक़-गोई के बा-वस्फ़ निगूँ-सारी पर
दोश पर अपने मिरा सर ही मुझे बार हुआ

हाँ ये मुमकिन है मगर इतना ज़रूरी भी नहीं
जो कोई प्यार में हारा वही फ़नकार हुआ

इक नज़र उस ने उचटती हुई की थी 'यासिर'
और फिर शहर में रहना मुझे दुश्वार हुआ