जैसी निगाह थी तिरी वैसा फ़ुसूँ हुआ
जो कुछ तिरे ख़याल में था जूँ-का-तूँ हुआ
बाद-ए-मुख़ालिफ़त जो कभी तेज़-तर हुई
सरगर्म और भी तिरा जज़्ब-ए-दरूँ हुआ
ख़ुर्शीद आप ले के चला तुझ को साए साए
तेरी मुवाफ़क़त में फ़लक वाज़गूँ हुआ
तेरे तुफ़ैल जाती रही ख़ार से चुभन
शादाबियों में मज़रआ-ए-हस्ती फ़ुज़ूँ हुआ
अज़्मत करे सलाम तिरे नाम की मुदाम
परचम तिरी वफ़ात के दिन सर-निगूँ हुआ

ग़ज़ल
जैसी निगाह थी तिरी वैसा फ़ुसूँ हुआ
ख़ालिद इक़बाल यासिर