EN اردو
जोशिश अज़ीमाबादी शायरी | शाही शायरी

जोशिश अज़ीमाबादी शेर

43 शेर

हैं दैर-ओ-हरम में तो भरे शैख़-ओ-बरहमन
जुज़ ख़ाना-ए-दिल कीजिए फिर क़स्द किधर का

जोशिश अज़ीमाबादी




हम को तो याद नहीं हम पे जो गुज़री तुझ बिन
तेरे आगे कहे जिस को ये कहानी आए

जोशिश अज़ीमाबादी




हमारे शेर को सुन कर सुकूत ख़ूब नहीं
बयान कीजिए इस में जो कुछ तअम्मुल हो

जोशिश अज़ीमाबादी




हुस्न और इश्क़ का मज़कूर न होवे जब तक
मुझ को भाता नहीं सुनना किसी अफ़्साने का

जोशिश अज़ीमाबादी




इंसान तो है सूरत-ए-हक़ काबे में क्या है
ऐ शैख़ भला क्यूँ न करूँ सज्दे बुताँ को

जोशिश अज़ीमाबादी




जो आँखों में फिरता है फिरे आँखों के आगे
आसान ख़ुदा कर दे ये दुश्वार मोहब्बत

जोशिश अज़ीमाबादी




जो है काबा वो ही बुत-ख़ाना है शैख़ ओ बरहमन
इस की नाहक़ करते हो तकरार दोनों एक हैं

जोशिश अज़ीमाबादी