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जोशिश अज़ीमाबादी शायरी | शाही शायरी

जोशिश अज़ीमाबादी शेर

43 शेर

छुप-छुप के देखते हो बहुत उस को हर कहीं
होगा ग़ज़ब जो पड़ गई उस की नज़र कहीं

जोशिश अज़ीमाबादी




अहवाल देख कर मिरी चश्म-ए-पुर-आब का
दरिया से आज टूट गया दिल हुबाब का

जोशिश अज़ीमाबादी




भूल जाता हूँ मैं ख़ुदाई को
उस से जब राम राम होती है

जोशिश अज़ीमाबादी




बे-गुनह कहता फिरे है आप को
शैख़ नस्ल-ए-हज़रत-ए-आदम नहीं

जोशिश अज़ीमाबादी




बस कर ये ख़याल-आफ़रीनी
उस के ही ख़याल में रहा कर

जोशिश अज़ीमाबादी




अपना दुश्मन हो अगर कुछ है शुऊर
इंतिज़ार-ए-वादा-ए-फ़र्दा न कर

जोशिश अज़ीमाबादी




अल्लाह ता-क़यामत तुझ को रखे सलामत
क्या क्या सितम न देखे हम ने तिरे करम से

जोशिश अज़ीमाबादी




ऐसी मिरे ख़ज़ाना-ए-दिल में भरी है आग
फ़व्वारा छूटता है मिज़ा से शरार का

जोशिश अज़ीमाबादी




ऐ ज़ुल्फ़-ए-यार तुझ से भी आशुफ़्ता-तर हूँ मैं
मुझ सा न कोई होगा परेशान-ए-रोज़गार

जोशिश अज़ीमाबादी