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जोश मलसियानी शायरी | शाही शायरी

जोश मलसियानी शेर

20 शेर

किस तरह दूर हों आलाम-ए-ग़रीब-उल-वतनी
ज़िंदगी ख़ुद भी ग़रीब-उल-वतनी होती है

जोश मलसियानी




आमाल की पुर्सिश न कर ऐ दावर-ए-महशर
मजबूर तो मुख़्तार कभी हो नहीं सकता

जोश मलसियानी




झुकती है निगाह उस की मुझ से मिल कर
दीवार से धूप उतर रही है गोया

जोश मलसियानी




इश्क़ उस दर्द का नहीं क़ाइल
जो मुसीबत की इंतिहा न हुआ

जोश मलसियानी




इस वहम से कि नींद में आए न कुछ ख़लल
अहबाब ज़ेर-ए-ख़ाक सुला कर चले गए

जोश मलसियानी




गिला ना-मेहरबानी का तो सब से सुन लिया तुम ने
तुम्हारी मेहरबानी की शिकायत हम भी रखते हैं

जोश मलसियानी




डूब जाते हैं उमीदों के सफ़ीने इस में
मैं न मानूँगा कि आँसू है ज़रा सा पानी

when hope and aspirations drown in them so easily
that tears are just some water, how can I agree

जोश मलसियानी




और होते हैं जो महफ़िल में ख़मोश आते हैं
आँधियाँ आती हैं जब हज़रत-ए-'जोश' आते हैं

जोश मलसियानी




आरिज़ों पर ये ढलकते हुए आँसू तौबा
हम ने शोलों पे मचलती हुई शबनम देखी

lord forbid that tears on your cheeks do flow
like dewdrops agonizing on embers all aglow

जोश मलसियानी