बहुत दिनों में मोहब्बत को ये हुआ मा'लूम
जो तेरे हिज्र में गुज़री वो रात रात हुई
फ़िराक़ गोरखपुरी
बहसें छिड़ी हुई हैं हयात ओ ममात की
सौ बात बन गई है 'फ़िराक़' एक बात की
फ़िराक़ गोरखपुरी
बद-गुमाँ हो के मिल ऐ दोस्त जो मिलना है तुझे
ये झिझकते हुए मिलना कोई मिलना भी नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी
असर भी ले रहा हूँ तेरी चुप का
तुझे क़ाइल भी करता जा रहा हूँ
फ़िराक़ गोरखपुरी
ऐ सोज़-ए-इश्क़ तू ने मुझे क्या बना दिया
मेरी हर एक साँस मुनाजात हो गई
फ़िराक़ गोरखपुरी
अब याद-ए-रफ़्तगाँ की भी हिम्मत नहीं रही
यारों ने कितनी दूर बसाई हैं बस्तियाँ
फ़िराक़ गोरखपुरी
अब तो उन की याद भी आती नहीं
कितनी तन्हा हो गईं तन्हाइयाँ
nowadays even her thoughts do not intrude
see how forlorn and lonely is my solitude
फ़िराक़ गोरखपुरी
आने वाली नस्लें तुम पर फ़ख़्र करेंगी हम-असरो
जब भी उन को ध्यान आएगा तुम ने 'फ़िराक़' को देखा है
फ़िराक़ गोरखपुरी
आँखों में जो बात हो गई है
इक शरह-ए-हयात हो गई है
फ़िराक़ गोरखपुरी