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फ़िराक़ गोरखपुरी शायरी | शाही शायरी

फ़िराक़ गोरखपुरी शेर

95 शेर

सर-ज़मीन-ए-हिंद पर अक़्वाम-ए-आलम के 'फ़िराक़'
क़ाफ़िले बसते गए हिन्दोस्ताँ बनता गया

फ़िराक़ गोरखपुरी




मंज़िलें गर्द के मानिंद उड़ी जाती हैं
वही अंदाज़-ए-जहान-ए-गुज़राँ है कि जो था

फ़िराक़ गोरखपुरी




मौत का भी इलाज हो शायद
ज़िंदगी का कोई इलाज नहीं

for death a cure there well may be
but for this life no remedy

फ़िराक़ गोरखपुरी




मज़हब की ख़राबी है न अख़्लाक़ की पस्ती
दुनिया के मसाइब का सबब और ही कुछ है

फ़िराक़ गोरखपुरी




मेरी घुट्टी में पड़ी थी हो के हल उर्दू ज़बाँ
जो भी मैं कहता गया हुस्न-ए-बयाँ बनता गया

फ़िराक़ गोरखपुरी




न कोई वा'दा न कोई यक़ीं न कोई उमीद
मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था

no promise,surety, nor any hope was due
yet I had little choice but to wait for you

फ़िराक़ गोरखपुरी




पाल ले इक रोग नादाँ ज़िंदगी के वास्ते
पाल ले इक रोग सिर्फ़ सेहत के सहारे

o foolish one for sake of living do adopt love's malady
heath alone is not enough,

फ़िराक़ गोरखपुरी




पर्दा-ए-लुत्फ़ में ये ज़ुल्म-ओ-सितम क्या कहिए
हाए ज़ालिम तिरा अंदाज़-ए-करम क्या कहिए

फ़िराक़ गोरखपुरी




क़ुर्ब ही कम है न दूरी ही ज़ियादा लेकिन
आज वो रब्त का एहसास कहाँ है कि जो था

फ़िराक़ गोरखपुरी