सर-ज़मीन-ए-हिंद पर अक़्वाम-ए-आलम के 'फ़िराक़'
क़ाफ़िले बसते गए हिन्दोस्ताँ बनता गया
फ़िराक़ गोरखपुरी
मंज़िलें गर्द के मानिंद उड़ी जाती हैं
वही अंदाज़-ए-जहान-ए-गुज़राँ है कि जो था
फ़िराक़ गोरखपुरी
मौत का भी इलाज हो शायद
ज़िंदगी का कोई इलाज नहीं
for death a cure there well may be
but for this life no remedy
फ़िराक़ गोरखपुरी
मज़हब की ख़राबी है न अख़्लाक़ की पस्ती
दुनिया के मसाइब का सबब और ही कुछ है
फ़िराक़ गोरखपुरी
मेरी घुट्टी में पड़ी थी हो के हल उर्दू ज़बाँ
जो भी मैं कहता गया हुस्न-ए-बयाँ बनता गया
फ़िराक़ गोरखपुरी
न कोई वा'दा न कोई यक़ीं न कोई उमीद
मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था
no promise,surety, nor any hope was due
yet I had little choice but to wait for you
फ़िराक़ गोरखपुरी
पाल ले इक रोग नादाँ ज़िंदगी के वास्ते
पाल ले इक रोग सिर्फ़ सेहत के सहारे
o foolish one for sake of living do adopt love's malady
heath alone is not enough,
फ़िराक़ गोरखपुरी
पर्दा-ए-लुत्फ़ में ये ज़ुल्म-ओ-सितम क्या कहिए
हाए ज़ालिम तिरा अंदाज़-ए-करम क्या कहिए
फ़िराक़ गोरखपुरी
क़ुर्ब ही कम है न दूरी ही ज़ियादा लेकिन
आज वो रब्त का एहसास कहाँ है कि जो था
फ़िराक़ गोरखपुरी