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बशीर बद्र शायरी | शाही शायरी

बशीर बद्र शेर

159 शेर

गुफ़्तुगू उन से रोज़ होती है
मुद्दतों सामना नहीं होता

daily I converse with her in my fantasy
very seldom is she ever face to face with me

बशीर बद्र




घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला

बशीर बद्र




घर नया बर्तन नए कपड़े नए
इन पुराने काग़ज़ों का क्या करें

बशीर बद्र




ग़ज़लों ने वहीं ज़ुल्फ़ों के फैला दिए साए
जिन राहों पे देखा है बहुत धूप कड़ी है

बशीर बद्र




ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखाएँगे
रोएँगे बहुत लेकिन आँसू नहीं आएँगे

बशीर बद्र




गले में उस के ख़ुदा की अजीब बरकत है
वो बोलता है तो इक रौशनी सी होती है

बशीर बद्र




एक औरत से वफ़ा करने का ये तोहफ़ा मिला
जाने कितनी औरतों की बद-दुआएँ साथ हैं

बशीर बद्र




दुश्मनी का सफ़र इक क़दम दो क़दम
तुम भी थक जाओगे हम भी थक जाएँगे

बशीर बद्र




दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों

bear enmity with all your might, but this we should decide
if ever we be friends again, we are not mortified

बशीर बद्र