देखें महशर में उन से क्या ठहरे
थे वही बुत वही ख़ुदा ठहरे
ठहरे उस दर पे यूँ तो क्या ठहरे
बन के ज़ंजीर-ए-बे-सदा ठहरे
साँस ठहरे तो दम ज़रा ठहरे
तेज़ आँधी में शम्अ' क्या ठहरे
ज़िंदगानी है इक नफ़स का शुमार
बे-हवा ये चराग़ क्या ठहरे
जिस को तुम ला-दवा बताते थे
तुम्हीं उस दर्द की दवा ठहरे
इश्क़ का जुर्म सहल काम नहीं
कि हर इक लाएक़-ए-सज़ा ठहरे
बीम-ओ-उम्मीद की कशाकश में
इक दो-राहे पे जैसे आ ठहरे
रोती आँखें झलक न देख सकीं
बहते ज़ख़्मों पे क्या दवा ठहरे
'आरज़ू' वो हमें नसीब कहाँ
कान तक जा के जो सदा ठहरे
ग़ज़ल
देखें महशर में उन से क्या ठहरे
आरज़ू लखनवी