EN اردو
अब्बास ताबिश शायरी | शाही शायरी

अब्बास ताबिश शेर

53 शेर

घर पहुँचता है कोई और हमारे जैसा
हम तिरे शहर से जाते हुए मर जाते हैं

अब्बास ताबिश




हम हैं सूखे हुए तालाब पे बैठे हुए हंस
जो तअल्लुक़ को निभाते हुए मर जाते हैं

अब्बास ताबिश




हम जुड़े रहते थे आबाद मकानों की तरह
अब ये बातें हमें लगती हैं फ़सानों की तरह

अब्बास ताबिश




हमारे जैसे वहाँ किस शुमार में होंगे
कि जिस क़तार में मजनूँ का नाम आख़िरी है

अब्बास ताबिश




आँखों तक आ सकी न कभी आँसुओं की लहर
ये क़ाफ़िला भी नक़्ल-ए-मकानी में खो गया

अब्बास ताबिश




हिज्र को हौसला और वस्ल को फ़ुर्सत दरकार
इक मोहब्बत के लिए एक जवानी कम है

अब्बास ताबिश




इक मोहब्बत ही पे मौक़ूफ़ नहीं है 'ताबिश'
कुछ बड़े फ़ैसले हो जाते हैं नादानी में

अब्बास ताबिश




इल्तिजाएँ कर के माँगी थी मोहब्बत की कसक
बे-दिली ने यूँ ग़म-ए-नायाब वापस कर दिया

अब्बास ताबिश




इस का मतलब है यहाँ अब कोई आएगा ज़रूर
दम निकलना चाहता है ख़ैर-मक़्दम के लिए

अब्बास ताबिश