तिरी मोहब्बत में गुमरही का अजब नशा था
कि तुझ तक आते हुए ख़ुदा तक पहुँच गए हैं
अब्बास ताबिश
तू भी ऐ शख़्स कहाँ तक मुझे बर्दाश्त करे
बार बार एक ही चेहरा नहीं देखा जाता
अब्बास ताबिश
उन आँखों में कूदने वालो तुम को इतना ध्यान रहे
वो झीलें पायाब हैं लेकिन उन की तह पथरीली है
अब्बास ताबिश
वक़्त लफ़्ज़ों से बनाई हुई चादर जैसा
ओढ़ लेता हूँ तो सब ख़्वाब हुनर लगता है
अब्बास ताबिश
वर्ना कोई कब गालियाँ देता है किसी को
ये उस का करम है कि तुझे याद रहा मैं
अब्बास ताबिश
ये मौज मौज बनी किस की शक्ल सी 'ताबिश'
ये कौन डूब के भी लहर लहर फैल गया
अब्बास ताबिश
ये मोहब्बत की कहानी नहीं मरती लेकिन
लोग किरदार निभाते हुए मर जाते हैं
अब्बास ताबिश
ये तो अब इश्क़ में जी लगने लगा है कुछ कुछ
इस तरफ़ पहले-पहल घेर के लाया गया मैं
अब्बास ताबिश
ये ज़मीं तो है किसी काग़ज़ी कश्ती जैसी
बैठ जाता हूँ अगर बार न समझा जाए
अब्बास ताबिश