इश्क़ कर के भी खुल नहीं पाया
तेरा मेरा मुआमला क्या है
अब्बास ताबिश
झोंके के साथ छत गई दस्तक के साथ दर गया
ताज़ा हवा के शौक़ में मेरा तो सारा घर गया
अब्बास ताबिश
ख़ूब इतना था कि दीवार पकड़ कर निकला
उस से मिलने के लिए सूरत-ए-साया गया मैं
अब्बास ताबिश
कुछ तो अपनी गर्दनें कज हैं हवा के ज़ोर से
और कुछ अपनी तबीअत में असर मिट्टी का है
अब्बास ताबिश
मैं अपने आप में गहरा उतर गया शायद
मिरे सफ़र से अलग हो गई रवानी मिरी
अब्बास ताबिश
मैं हूँ इस शहर में ताख़ीर से आया हुआ शख़्स
मुझ को इक और ज़माने में बड़ी देर लगी
अब्बास ताबिश
मैं जिस सुकून से बैठा हूँ इस किनारे पर
सुकूँ से लगता है मेरा क़याम आख़िरी है
अब्बास ताबिश
मकीं जब नींद के साए में सुस्ताने लगें 'ताबिश'
सफ़र करते हैं बस्ती के मकाँ आहिस्ता आहिस्ता
अब्बास ताबिश