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इतना आसाँ नहीं मसनद पे बिठाया गया मैं | शाही शायरी
itna aasan nahin masnad pe biThaya gaya main

ग़ज़ल

इतना आसाँ नहीं मसनद पे बिठाया गया मैं

अब्बास ताबिश

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इतना आसाँ नहीं मसनद पे बिठाया गया मैं
शहर-ए-तोहमत तिरी गलियों में फिराया गया मैं

मेरे होने से यहाँ आई है पानी की बहार
शाख़-ए-गिर्या था सर-ए-दश्त लगाया गया मैं

ये तो अब इश्क़ में जी लगने लगा है कुछ कुछ
इस तरफ़ पहले-पहल घेर के लाया गया मैं

ख़ूब इतना था कि दीवार पकड़ कर निकला
उस से मिलने के लिए सूरत-ए-साया गया मैं

तुझ से कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं थी वर्ना
एक मुद्दत तिरी दहलीज़ तक आया गया मैं

ख़ल्वत-ए-ख़ास में बुलवाने से पहले 'ताबिश'
आम लोगों में बहुत देर बिठाया गया मैं