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आशुफ़्ता चंगेज़ी शायरी | शाही शायरी

आशुफ़्ता चंगेज़ी शेर

35 शेर

घर में और बहुत कुछ था
सिर्फ़ दर-ओ-दीवार न थे

आशुफ़्ता चंगेज़ी




आँख खुलते ही बस्तियाँ ताराज
कोई लज़्ज़त नहीं है ख़्वाबों में

आशुफ़्ता चंगेज़ी




घर के अंदर जाने के
और कई दरवाज़े हैं

आशुफ़्ता चंगेज़ी




एक मंज़र में लिपटे बदन के सिवा
सर्द रातों में कुछ और दिखता नहीं

आशुफ़्ता चंगेज़ी




दिल देता है हिर-फिर के उसी दर पे सदाएँ
दीवार बना है अभी दीवाना नहीं है

आशुफ़्ता चंगेज़ी




दरियाओं की नज़्र हुए
धीरे धीरे सब तैराक

आशुफ़्ता चंगेज़ी




बुरा मत मान इतना हौसला अच्छा नहीं लगता
ये उठते बैठते ज़िक्र-ए-वफ़ा अच्छा नहीं लगता

आशुफ़्ता चंगेज़ी




बदन भीगेंगे बरसातें रहेंगी
अभी कुछ दिन ये सौग़ातें रहेंगी

आशुफ़्ता चंगेज़ी




अजीब ख़्वाब था ताबीर क्या हुई उस की
कि एक दरिया हवाओं के रुख़ पे बहता था

आशुफ़्ता चंगेज़ी