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धूप के रथ पर हफ़्त अफ़्लाक | शाही शायरी
dhup ke rath par haft aflak

ग़ज़ल

धूप के रथ पर हफ़्त अफ़्लाक

आशुफ़्ता चंगेज़ी

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धूप के रथ पर हफ़्त अफ़्लाक
चौबारों के सर पर ख़ाक

शहर-ए-मलामत आ पहुँचा
सारे मनाज़िर इबरत-नाक

दरियाओं की नज़्र हुए
धीरे धीरे सब तैराक

तेरी नज़र से बच पाएँ
ऐसे कहाँ के हम चालाक

दामन बचना मुश्किल है
रस्ते जुनूँ के आतिशनाक

और कहाँ तक सब्र करें
करना पड़ेगा सीना चाक