तेरा हर राज़ छुपाए हुए बैठा है कोई
ख़ुद को दीवाना बनाए हुए बैठा है कोई
अख़्तर सिद्दीक़ी
दफ़्न कर सकता हूँ सीने में तुम्हारे राज़ को
और तुम चाहो तो अफ़्साना बना सकता हूँ मैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
ये मेरे इश्क़ की मजबूरियाँ मआज़-अल्लाह
तुम्हारा राज़ तुम्हीं से छुपा रहा हूँ मैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
जिन को अपनी ख़बर नहीं अब तक
वो मिरे दिल का राज़ क्या जानें
दाग़ देहलवी
कोई समझेगा क्या राज़-ए-गुलशन
जब तक उलझे न काँटों से दामन
फ़ना निज़ामी कानपुरी
अपना ही हाल तक न खुला मुझ को ता-ब-मर्ग
मैं कौन हूँ कहाँ से चला था कहाँ गया
हैरत इलाहाबादी
हाए वो राज़-ए-ग़म कि जो अब तक
तेरे दिल में मिरी निगाह में है
जिगर मुरादाबादी