मैं मोहब्बत न छुपाऊँ तू अदावत न छुपा
न यही राज़ में अब है न वही राज़ में है
कलीम आजिज़
कुछ कहने तक सोच ले ऐ बद-गो इंसान
सुनते हैं दीवारों के भी होते हैं कान
मख़मूर सईदी
ग़ैरों पे खुल न जाए कहीं राज़ देखना
मेरी तरफ़ भी ग़म्ज़ा-ए-ग़म्माज़ देखना
मोमिन ख़ाँ मोमिन
दामन अश्कों से तर करें क्यूँ-कर
राज़ को मुश्तहर करें क्यूँ-कर
मुबारक अज़ीमाबादी
कोई किस तरह राज़-ए-उल्फ़त छुपाए
निगाहें मिलीं और क़दम डगमगाए
नख़्शब जार्चवि
उन से सब हाल दग़ाबाज़ कहे देते हैं
मेरे हमराज़ मिरा राज़ कहे देते हैं
नूह नारवी
ब-पास-ए-दिल जिसे अपने लबों से भी छुपाया था
मिरा वो राज़ तेरे हिज्र ने पहुँचा दिया सब तक
क़तील शिफ़ाई