इक कार-ए-मुहाल कर रहा हूँ
ज़िंदा हूँ कमाल कर रहा हूँ
सरशार सिद्दीक़ी
मैं ने इबादतों को मोहब्बत बना दिया
आँखें बुतों के साथ रहीं दिल ख़ुदा के साथ
सरशार सिद्दीक़ी
मिरी तलब में तकल्लुफ़ भी इंकिसार भी था
वो नुक्ता-संज था सब मेरे हस्ब-ए-हाल दिया
सरशार सिद्दीक़ी
ना-मुस्तजाब इतनी दुआएँ हुईं कि फिर
मेरा यक़ीं भी उठ गया रस्म-ए-दुआ के साथ
सरशार सिद्दीक़ी
नींद टूटी है तो एहसास-ए-ज़ियाँ भी जागा
धूप दीवार से आँगन में उतर आई है
सरशार सिद्दीक़ी
'सरशार' मैं ने इश्क़ के मअ'नी बदल दिए
इस आशिक़ी में पहले न था वस्ल का चलन
सरशार सिद्दीक़ी
उजड़े हैं कई शहर, तो ये शहर बसा है
ये शहर भी छोड़ा तो किधर जाओगे लोगो
सरशार सिद्दीक़ी