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चेहरे को बहाल कर रहा हूँ | शाही शायरी
chehre ko bahaal kar raha hun

ग़ज़ल

चेहरे को बहाल कर रहा हूँ

सरशार सिद्दीक़ी

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चेहरे को बहाल कर रहा हूँ
दुनिया का ख़याल कर रहा हूँ

इक कार-ए-मुहाल कर रहा हूँ
ज़िंदा हूँ कमाल कर रहा हूँ

वो ग़म जो अभी मिले नहीं हैं
मैं उन का मलाल कर रहा हूँ

अशआर भी दावत-ए-अमल हैं
तक़लीद-ए-बिलाल कर रहा हूँ

तस्वीर को आईना बना कर
तशरीह-ए-जमाल कर रहा हूँ

चेहरे पे जवाब चाहता हूँ
आँखों से सवाल कर रहा हूँ

कुछ भी नहीं दस्तरस में 'सरशार'
क्यूँ फ़िक्र-ए-मआल कर रहा हूँ