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प्रेम कुमार नज़र शायरी | शाही शायरी

प्रेम कुमार नज़र शेर

11 शेर

आएगी हर तरफ़ से हवा दस्तकें लिए
ऊँचा मकाँ बना के बहुत खिड़कियाँ न रख

प्रेम कुमार नज़र




बहुत लम्बी मसाफ़त है बदन की
मुसाफ़िर मुब्तदी थकने लगा है

प्रेम कुमार नज़र




दिल-ए-तबाह की ईज़ा-परस्तियाँ मालूम
जो दस्तरस में न हो उस की जुस्तुजू करना

प्रेम कुमार नज़र




एक अंगड़ाई से सारे शहर को नींद आ गई
ये तमाशा मैं ने देखा बाम पर होता हुआ

प्रेम कुमार नज़र




हो रहा है पस-ए-दीवार भी कुछ
जाने क्या करता है करने वाला

प्रेम कुमार नज़र




जी चाहता है हाथ लगा कर भी देख लें
उस का बदन क़बा है कि उस की क़बा बदन

प्रेम कुमार नज़र




कहें हैं रेख़्ता पंजाब में नज़र-साहिब
ब-क़द्र-ए-ज़ौक़ तुम उन की सुनो हुआ सो हुआ

प्रेम कुमार नज़र




लफ़्ज़ छिन जाएँ मगर तहरीर हो रौशन जहाँ
होंट हों ख़ामोश लेकिन गुफ़्तुगू बाक़ी रहे

प्रेम कुमार नज़र




मैं भी तलाश-ए-आब-ए-हवस में निकला हूँ
शोर सुना था इक चश्मे के उबलने का

प्रेम कुमार नज़र